[तर्ज : ढोलक, ढोल मंजिरा........]
दोहा : लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन, जय-जय-जय कपि सूर ॥
थारे झाँझ नगाड़ा बाजे रे,
सालासर के मन्दिर में, हनुमान विराजे रे ।। टेर ।।
भारत राजस्थान में जी, सालासर इक धाम ।
सूरज सामों बन्यो देवरो, महिमा अपरम्पार ।
थारे लाल ध्वजा फहरावे रे ।
।।सालासर के मन्दिर में..... १।।
बाबो अटक्यों काज संवारे रे ।दूर देश से दर्शन करने, आवे नर और नार ।नारेलां की गिनती नहिं बाबा, सुवर्ण छत्र अपार ।
।।सालासर के मन्दिर में..... २ ॥
चैत सुदी पूनम को मेलो, भीड़ लगे अति भारी ।
नर-नारी तेरा दर्शन करने, आवे बारी-बारी ।
थारे जात-जडूला लागे रे ।
।। सालासर के मन्दिर में..... ३ ।।
रामदूत अंजनी के सुत का, धरो हमेशा ध्यान ।
'मस्त-मण्डल' चरणों का चाकर, लाज राखो हनुमान ।
बाबो बेड़ा पार लगावे रे ।
।।सालासर के मन्दिर में..... ४ ।।
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