( दोहा )
ऊंची पेड़ी कला धणी की चड़यो न उतरो जाय
किज्यो जी म्हारा कला धणी न म्हारी बाह पकड़ ले जाय
( भजन )
आओ जी आओ म्हारा डिग्गी रा कल्याण जी
भक्ता के द्वार थान्न आया सरसी
भजना म आओ म्हारा श्री कल्याण जी
मिश्री को भोग लगाया सरसी ।
आओ जी जाओ म्हारा डिग्गी रा कल्याण जी
था बिन मोत्याला , भजन भी सूना
आओ पधारो म्हारा साँवरियाँ
लगायो सिहांसन मखमल को जी
आओ बिराजो म्हारा साँवरिया ।
पलका बिछाया बेठ्या थार दरबार में
भक्ता की आस तू ही पूरी करसी ।
आओ जी जाओ म्हारा डिग्गी रा कल्याण जी ।।टेर।।
चारो दिशा मे , बाज नौबत बाजा
फूल बिछाया प्रभु आँगन मे।
आज थे आओ प्रभु म्हार द्वारे
मै तो आस्या थार सावण मे।
अरज सुनो जी म्हारा डिग्गी रा कल्याण जी
माननी पडली थान माकी अरजी
भक्ता कर द्वार थान आया सरसी।
आओ जी जाओ म्हारा डिग्गी रा कल्याण जी ।।टेर।।
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